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अमेरिकी सील कमांडो ऑपरेशन में ओसामा जी की हत्या से विश्व-परिदृश्य में एक नयी उथल पुथल मच गयी थी| आम जनता की जिह्वा से लेकर खबरिया चैनलों (?) पर बस ओसामा जी – ओसामा जी ही छाये थे| सबसे अधिक असमंजस में यदि कोई दिखा तो वह अपनी मनमोहनी सरकार!
एक तो अमेरिका ने कार्यवाही इतने अचानक की कि प्रधानमंत्री समेत समूची सरकार को राष्ट्रीय सलाहकार समिति कि अद्ध्यक्षद महोदया से सलाह करने का समय ही नहीं मिल पाया कि इस मुद्दे पर क्या कहा जाये क्या नहीं.! और फिर मीडिया व विश्व की उथल-पुथल ने भोले प्रधानमंत्री कि भोली सरकार कि भोली बुद्धि को विचलित कर दिया, परिणाम गृहमंत्री जी का राग भैरवी तो विदेश-मंत्रालय का राग बेताल..!
खैर! सरकार के राग भले ही बे-ताल और बेसुरे हों किन्तु भारतीय जनता का जो सुर फूटा वह एक ही था कि भारत सरकार को भी अमेरिका कि भाँति अपने हितों की रक्षा हेतु किसी भी कार्यवाही कि सामर्थ्य और इच्छा शक्ति विकसित करनी चाहिए| प्रश्न भारतीय जनमानस का होता तो सरकार उसे दबाने का रास्ता खोजती या उसे संघ कि साजिश करार देकर अपनी शुतुरमुर्गी गर्दन को अपनी मृत मानसिकता की रेत में घुसेड़कर निश्चिंत हो जाती किन्तु तभी भारतीय सेनाप्रमुख वी के सिंह मैदान में उतर आये और भारतीय सेना के साहस और सामर्थ्य को असंदिग्ध बताते हुए कह डाला कि सेना ऐसी किसी भी कार्यवाही में सक्षम है, अब सरकार पर इस सामर्थ्य को साबित करने का दबाब आना स्वाभाविक था तभी ऊपर से पाकिस्तानी रक्षा सचिव सलमान भाई ने चुनौती दे डाली!
यह बात क्रांतिकारी कांग्रेस को नागवार गुजर गयी और उसने अपने शासन में भारतीय आक्रमण शक्ति को प्रमाणित करने की ठान ली| गृहमंत्रालय के अंदरूनी सूत्र बताते है कि सरकार तभी से किसी बड़े आतंकवादी की तलाश में जुट गयी जहाँ वो अपने शासन कि शक्ति प्रमाणित कर सके! बस फिर क्या था ४ जून को अमेरिका के मुकाबले सरकार को बाबा रामदेव के रूप में दूसरा ओसामा मिल ही गया| रामदेव के रामलीला ठिकाने पर आधीरात १२;३०-१;०० बजे लगभग सील स्टाइल में सरकार ने देसी पुलिस को उतार कर सिद्ध कर दिया कि जो काम अमेरिका में सील्स कर सकते है वो भारत कि देसी पुलिस करने कि ताकत रखती है| अमेरिकी हमले में लादेन व उसके चंद गुर्गे ही थे लेकिन हमारी सरकार ने बाबा रामदेव को उनके पचासों हजार सहयोगियों के साथ घेरकर अपनी ताकत और हौसलों का सन्देश पूरे विश्व को दे दिया|
आप सोंच रहे होंगे कि वो तो सब ठीक है किन्तु लादेन और रामदेव में क्या समानता.? समानता है, सरकार की घोषित आतंकवाद नीति में आतंकवाद का अर्थ है हिन्दू आतंकवाद जैसा कि पूरी कांग्रेस व दिग्विजय कहते आ रहे हैं, जैसा कि राहुल जी को अमेरिकी राजदूत के सम्मुख चिंता व्यक्त करनी पड़ी और जैसा कि नया साम्प्रदायिकता विरोधी (?) क़ानून बताता है.., जैसा कि आप जानते ही हैं कि बाबा रामदेव हिन्दू ही हैं.! आतंकवाद की अगली सुगढ़ और सघन व्याख्या है ” भगवा आतंकवाद”, बाबा रामदेव तो हर समय भगवा ही लपेटे रहते हैं.! बाबा रामदेव संघ के स्वयंसेवकों से भी मिलते हैं और फिर राष्ट्रभक्ति का सबसे बड़ा प्रमाणपत्र जोकि कांग्रेस और कांग्रेस प्रमुख की चापलूसी से मिलता है वो भी नहीं है बाबा के पास.! अब और कितने प्रमाण चाहिए बाबा के आतंकवादी होने में.?
अब आप पूछेंगे कि यदि बाबा पर ओसामा स्टाइल में हमला किया गया है तो बाबा को अपराधी और ओसामा को ओसमा जी क्यों कहा जा रहा है.? यह मामला अल्पसंख्यकों की सुकोमल भावनाओं का है बंधुवर.! आप दिल्ली कि जमामस्जिद के तत्कालीन इमाम उस बूढ़े बुखारी को भूल गए जिसने इसी रामलीला मैदान में स्वयं को ISI का एजेंट बताते हुए सरकार को अपनी गिरफ्तारी चुनौती दे डाली थी फिर भी हमारी सरकार को उसकी खिदमत ही करनी पड़ी थी? वह भले ही अल्लाह को प्यारा हो चूका हो किन्तु उसके सत्पुत्र छोटे बुखारी और उनके तमाम भक्त अभी जिन्दा हैं| और कश्मीर से लेकर दिल्ली तक “कश्मीर: फ्रीडम दि ओनली वे” का नारा देते हुए पूरे भारत व भारतीय भावनाओं को चुनौती देते हुए भारतीय संविधान के मुंह पर थूक कर चले जाने वाले गिलानी साहब! वो भी तो अपने ही हैं| नासिर मदानी, अफजल गुरु, और ओसामा जी के गम में दुआ पढने वाले हैदराबादी मौ. नसीरुद्दीन जैसे मौलानाओ कि कतार और छोटे-२ कस्बों में ओसामा जी के गम में दुआ पढने वाले उनके ईमानदार अनुयायी.., ये सब सुकोमल भावनाओं बाले अल्पसंख्यक ही तो हैं जिनका ख़याल सरकार को हर समय रखना पड़ता है|
खैर! आप न ही बाबा रामदेव के आन्दोलन में रूचि दिखाइए और न ही काले धन के बारे में ही बात करिए अन्यथा आपके घर पर सीबीआई से लेकर ED और IT तक के छापे आधी-आधी रात को पड़ने लगेंगे….!
“साईं उतना दीजिये जामे कुटम समाये”
आप क्या सोचते हैं….?
BY- वासुदेव त्रिपाठी
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