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सोनिया बनाम चिदंबरम; अनसुलझी पहेली

RASHTRA BHAW
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sonia_SL_26_09_2011जब विदेशी बैंकों में हजारों करोड़ों के खातेदार घोड़ेवाले हसन अली के खातों में सोनिया गाँधी के पैसे होने की बात इधर-उधर से उछली थी तब इसे काफी हल्के में लिया गया था, बाबजूद इसके कि सोनिया के निकटतम वफादार अहमद पटेल के हसन अली से सम्बन्ध सामने आए थे। हाल में हसन अली के चर्चा में आने से पहले उसका कई बार कानूनी शिकंजे में आना और फिर आश्चर्यजनक रूप से बच निकालना भी कम आश्चर्यपूर्ण नहीं रहा है, किन्तु अब जब विदेशों में जमा’ काला धन सामने आने के बाद पूरा देश हसन अली को जान चुका है गिरफ्तार होने के बाद भी धीरे-धीरे ढीले पड़ रही कानूनी घेरेबंदी और सरकार कि रहस्यमयी चुप्पी बड़े सवालों व शंकाओं को मजबूत करती है.! Investigative media तो ऐसे विषयों पर क्रियाशून्य दिखाई ही देती है main media में भी ये विषय कभी special story अथवा मुख्य पृष्ठ तक नहीं पहुँच पाते.! इसे चाहे मीडिया की निष्क्रियता कहें अथवा नेताओं की अतिसक्रियता, किन्तु यह सत्य है कि छोटे मुंह बड़े पेट की ऐसी ही पचासों कहानियाँ आम जनता की आँखों में पड़ने से पहले ही ओझल हो जाती हैं।
ऐसी ही एक नयी रहस्यमयी कहानी प्रकाश में आई है, दिल्ली के एक व्यापारी एस.पी गुप्ता के विरुद्ध VLS finance नामक कम्पनी ने धोखाधड़ी की एक FIR दर्ज कराई थी जिसकी चार्जशीट 17 जनवरी 2006 को कोर्ट में प्रस्तुत की गयी। एस.पी गुप्ता व उनके अन्य सहयोगी एस.एच सिद्दीकी पर आरोप है कि उन्होने आर्थिक घपलेबाजी व जालसाजी के लिए कई सांसदों के लेटरहेड प्रयोग किए, साथ ही वे “ऑल इण्डिया राजीव गाँधी क्रांतिकारी संगठन” नामक एक संस्था भी चलाते थे सोनिया गाँधी जिसकी कथित रूप से संरक्षिका थीं। संस्था का मुख्यालय भी दिल्ली में है। इस संस्था व सोनिया गाँधी के कथित संरक्षण का प्रयोग करते हुए एस.पी गुप्ता व एस.एच सिद्दीकी ने कई बड़ी घपलेवाजियों को अंजाम दिया। यद्यपि जांच के दौरान सोनिया गाँधी नियंत्रित राष्ट्रीय सलाहकार समिति में OSD के माध्यम से सोनिया ने गुप्ता-सिद्दीकी अथवा उनकी संस्था से किसी भी प्रकार के सम्बन्धों को नकार दिया किन्तु फिर भी यहाँ एक प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या कोई सामान्य आदमी सांसदों के लेटरहेड अथवा सोनिया के नाम प्रयोग करने का साहस कर सकता है? जानकारी के अनुसार गुप्ता की संस्था एक NGO है अतः स्वाभाविक है कि संस्था आधिकारिक रूप से पंजीकृत भी होनी चाहिए..!!
गुत्थी आश्चर्यपूर्ण तरीके से तब और भी उलझ गयी जब पता चला कि हमारे वर्तमान गृहमंत्री पी. चिदम्बरम इस मामले में एस.पी गुप्ता के वकील रहे हैं! 2006 में रजिस्टर हुए घपलेबाजी के इस केस को चिदम्बरम तत्कालीन वित्तमंत्री रहते हुए हाथ में लेते हैं जबकि सोनिया गाँधी द्वारा मामले से दूरी बनाते हुए धोखाधड़ी का प्रमाणपत्र दे दिया जाता है। फिर 2011 में गृहमंत्रालय मुकदमों जनहित की दुहाई देकर वापस ले लेता है..! ऐसी स्थिति में कई गंभीर प्रश्न स्वभावत: ही उठ खड़े होते हैं जिनका उत्तर देश को मांगना चाहिए!
भारत जैसे देश का वित्तमंत्री किसी छोटी सी संस्था के अदने से मामले में वकालत के लिए खड़ा हो जाये तो क्या इसे मात्र पेशे का मामला माना जाना चाहिए? क्या चिदम्बरम जैसे व्यक्ति को कोई मामूली सा आदमी अपना वकील बना सकता है? इतनी बड़ी हैसियत व पहुँच रखने वाले व्यक्ति का सोनिया के संरक्षण का दावा क्या मात्र इसी आधार पर झूठा मान लेना चाहिए क्योंकि सोनिया ने इससे इंकार कर दिया है? धोखाधड़ी की FIR वापस लेने से जनहित किस प्रकार होता है? क्या इस मसले को हम सोनिया बनाम चिदंबरम मान लें.?
यद्यपि पहले से ही 2G घोटाले में फँसते दिख रहे संकटग्रस्त चिदम्बरम ने अपने आपको बचाने के प्रयास में मामले में गृहमंत्रालय के हस्तक्षेप से मना कर दिया था किन्तु कानून एवं विधि मंत्रालय से हुए पत्राचार एवं गृहमंत्रालय के एक अधिकारी के बयान ने उनकी पोल खोल दी! पहले से ही चिदम्बरम पर आक्रामक भाजपा सहित विपक्षी पार्टियों ने इस्तीफे के लिए उन्हें घेरना शुरू कर दिया है किन्तु गाँधी परिवार के प्रति वफादारी के लिए प्रशिद्ध काँग्रेस एक बार फिर विपक्षियों का केन्द्र से ध्यान भटकाने में सफल होती दिख रही है। सोनिया गाँधी तक मामले की धमक पहुँचने से रोकने में चिदम्बरम सेफ़्टी वॉल्व बनते दिख रहे हैं। यदि हम घोटालों के इतिहास पर दृष्टि डालें तो स्पष्ट है कि यह विधा भारतीय राजनीति की परम्परा रही है। यक्ष प्रश्न सदैव अनुत्तरित रहता है और बुदबुदों पर बहस छिड़ जाती है। इसे हम 2G घोटाले से जोड़कर देखने का प्रयास करें- जिस तरह 1.76 लाख करोड़ के घोटाले को पहले पूरा-पूरा पी जाने का प्रयास किया गया उसके बाद भांडा फूटने पर कुछ अधिकारियों के साथ ए.राजा की बलि दी गयी। कनिमोरी के लपेटे में आने के बाद करुणानिधि का खाना पीना ही छूट गया था किन्तु 10जनपथ के चक्करों से उन्हें ढांढस बंधा रहा, शायद इसीलिए बार बार उकताने के बाद भी इस उम्मीद के साथ कि समय के साथ-साथ बोफोर्स की तरह कोई रास्ता निकाल ही आएगा, सरकार को उनका समर्थन जारी रहा! अब इस महाजाल की जड़ें चिदम्बरम तक पहुँचती दिख रही हैं जैसा कि डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी पहले से कहते रहे हैं। अभी तक अपने हर दावे को सत्य सिद्ध कर दिखाने वाले डॉ. स्वामी गाँधी परिवार के रक्षा कवचों को तोड़ 2G का फन्दा ए. राजा-चिदम्बरम के बाद रोबर्ट बड्रा व सोनिया की इटली रहने वाली दो बहनों से होते हुए सोनिया तक पहुंचाने का दावा कर रहे हैं किन्तु फिर भी यह तो भविष्य ही बताएगा कि डॉ स्वामी नॉकआउट मूवी के बलवीर सिंह का रोल पूरा कर पाते हैं अथवा भेंड-बकरियों से निपटते-निपटते कथित शिकार एक बार फिर निकलने में सफल रहता है.! वैसे इस नए केस से एक बार फिर यही लग रहा है हर बार हाथी निकल जाता है और हम हर बार धूल पीटते रह जाते हैं।
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-Vasudev Tripathi

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