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आज मैं अपना एक्जाम देकर आया तो खाना खाते समय पास पड़े दैनिक जागरण पर नजर पड़ी तो मैं पन्ने पलटने लगा। संपादकीय पृष्ठ पर ए. सूर्यप्रकाश जी का लेख “बोफोर्स के जिन्न की वापसी” देखा जोकि बोफोर्स घोटाले पर फिर शुरू हुए विवाद पर लिखा गया था। ए. सूर्यप्रकाश जी वरिष्ठ स्तंभकार हैं व उनके लेख मैं बचपन में तब से पढ़ता आ रहा हूँ जब शायद कक्षा 3-4 के आस पास रहा हूंगा! कुछ दिनों पहले ही दिल्ली में एक कार्यक्रम में उनसे मुलाक़ात का अवसर भी मिला था। ए. सूर्यप्रकाश जी ने विषय की बड़ी कुशल शल्यक्रिया की है किन्तु पूरी बेबाकी के बाद भी वे एक प्रश्न को पाठकों के लिए छोड़ देते हैं कि इटालियन क्वात्रोची ने तय समय से पहले ही करार कराने में कैसे और किसकी मदद से सफलता हासिल कर ली? लेख में स्पष्ट है कि स्वीडन कंपनी बोफोर्स ने क्वात्रोची की ए. ई सर्विसेस के साथ 1985 में डील की थी कि यदि बोफोर्स तोपों का भारत के साथ सौदा 31 मार्च 1986 तक फ़ाइनल हो जाता है तो ए. ई सर्विसेस को तीन प्रतिशत कमीशन मिलेगा।
सूर्यप्रकाश जी के छोड़े हुए प्रश्न से मैं विषय को उठाता हूँ। क्वात्रोची नंबर एक पर चल रही फ्रांस की सोफ्मा को पीछे कराकर तय समय से पहले ही यह सौदा कराने में कैसे सफल हो गया यह सामान्य बुद्धि के लिए भी एक जटिल प्रश्न नहीं है। कोई भी व्यक्ति किसी देश की सुरक्षा संबन्धित सौदे में तब तक दलाली नहीं कर सकता जब तक उसकी सरकार में घुसपैठ न हो। क्वात्रोची को दलाली में 73 लाख डॉलर की मोटी रकम मिली थी यह पहले से ही स्पष्ट था, पूरा भंडा फोड़ने वाले लिण्ड्स्ट्रोम के सामने आकार दिये गए बयान से पुनः साफ हो गया है। इटालियन क्वात्रोची के राजीव गांधी के परिवार से घनिष्ठ सम्बन्ध थे। राजीव गांधी के परिवार का मतलब नेहरू या इन्दिरा गांधी नहीं हो सकता। राजीव के परिवार से सीधा मतलब सोनिया गांधी से ही है, राहुल और प्रियंका तब बच्चे थे। सीधे तौर पर इस निकटता की जड़ें इटली से जुड़ी हुई थीं। हाँलाकि यह बात और है कि स्पष्ट सबूतों के आधार पर जब आयकर अपील ट्रिब्यूनल ने कहा था कि क्वात्रोची को बोफोर्स घोटाले में घूस मिली थी तब तत्कालीन कानूनमंत्री वीरप्पा मोइली गांधी परिवार की सफाई मे यह कहते हुए उतर आए थे कि क्वात्रोची का गांधी परिवार के साथ किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं था। यह कॉंग्रेस की पारंपरिक चाटुकारिता रही है। क्वात्रोची और सोनिया के बीच सम्बन्धों व निकटताओं को सबसे पहले हेडलाइन टुडे ने उन दस्तावेजों के आधार पर उजागर किया था जोकि सीबीआई से जुड़े थे। 29 मार्च 1997 को सीबीआई इंस्पेक्टर घनश्याम राय ने एक तत्कालीन खुफिया विभाग के अधिकारी नरेश चन्द्र गोसाईं का बयान लिया था। गोसाईं 1984 से 1987 तक राजीव गांधी व 1987 से 1989 तक सोनिया गांधी की विशेष सुरक्षा मे नियुक्त थे। गोसाईं ने अपने बयान में कहा था कि क्वात्रोची व उनकी पत्नी मारिया क्वात्रोची सोनिया गांधी व राजीव के काफी करीब थे और जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने थे तब क्वात्रोची व उसका परिवार अक्सर प्रधानमंत्री आवास आते थे। सोनिया व राजीव भी क्वात्रोची के घर अक्सर जाते थे और जब भी कभी वे दोनों देश या विदेश यात्रा पर जाते थे तो राहुल और प्रियंका क्वात्रोची के घर पर ही रहते थे। सच है कि भारतीय माँ बाप औरे पश्चिमी माँ व उसके अंडर में रहने वाले बाप में बड़ा फर्क होता है! गोसाईं बताते हैं कि सोनिया भी कई बार क्वात्रोची के घर पर रुकती थीं और तब उन्हें वहीं ड्यूटी करनी पड़ती थी। गोसाईं के बयान के अनुसार क्वात्रोची व उनके परिवार की प्रधानमंत्री आवास 5 व 7 रेस कोर्स रोड पर फ्री एन्ट्री थी, उनके लिए रोज अलग से पास तैयार रहता था। सुरक्षा स्टाफ का हर व्यक्ति उन्हें पहचानता था।
इसके अतिरिक्त सीबीआई को एक और महत्वपूर्ण बयान क्वात्रोची के ड्राईवर शशिधरन का मिला था। शशिधरन क्वात्रोची की मर्सिडीज DIA 6253 चलाता था। शशिधरन का बयान उन्हीं बातों को दोहराता है जो नरेश गोसाईं ने कही थी। शशिधरन चूंकि एक ड्राईवर था अतः उसे कुछ अंदरूनी जानकारी भी थी। उसने बताया कि 1985 में उसने नौकरी शुरू की थी तब क्वात्रोची दिन में 2-3 बार प्रधानमंत्री निवास जाता था। स्पष्ट है इसी समय रक्षा सौदे सम्बन्धी योजना चल रही थी जिसमे स्वीडन की बोफोर्स, फ्रांस की सोफ्मा व ऑस्ट्रीया की वोएस्ट दौड़ में थीं। शशिधरन बताता है कि सोनिया की माँ साल मे 4-5 बार इटली से भारत आती थीं तो क्वात्रोची के घर जरूर जाती थी व क्वात्रोची की पत्नी उन्हें शॉपिंग के लिए ले जाती थी। शशीधरन ने 1989 से 1993 तक की एक सूची भी बना रखी थी जिसमे क्वात्रोची के 7 रेस कोर्स व 10 जनपथ जाने आने का तिथिवार विवरण उसने लिख रखा था। सूची मे 41 मौकों को तिथिबद्ध किया गया है। शशिधरन ने बताया कि 1991 में राजीव गांधी की मृत्यु के बाद भी क्वात्रोची व सोनिया का मिलना जारी रहा, उसके पास ऐसी 21 मुलाकातों की लिखित तारीखें थीं। जबकि इस समय क्वात्रोची के नाम भांडा मीडिया में फूट चुका था व सीबीआई की लिस्ट में भी क्वात्रोची का नाम चढ़ चुका था।
ये पूरी कहानी मीडिया में भले ही लीक हो गई हो किन्तु सरकार इसे पूरी सफाई से पी गयी और वीरप्पा मोइली कानूनमंत्री रहते हुए राजीव-सोनिया को क्लीनचिट देने से बाज नहीं आए! इन सबूतों के बिना भी सच्चाई को साफ समझा जा सकता है। जिस तरह से 2004 में सत्ता मे आते ही संप्रग सरकार ने क्वात्रोची पर इंटरपोल से लेकर घरेलू अदालत तक हर जगह केस खतम करा दिये व बाजपेयी सरकार द्वारा इंग्लैंड में सीज कराये गए उसके खातों को इंग्लैंड सरकार से कहकर खुलवा दिया, इससे साफ समझा जा सकता है कि सोनिया के क्वात्रोची के साथ कैसे सम्बन्ध रहे हैं। अब जबकि स्टेन लिण्ड्स्ट्रोम के साफ बयान से स्पष्ट हो चुका है कि घोटाला पूरी तरह राजीव गांधी व सोनिया गांधी की जानकारी में था व उन्होने क्वात्रोची को बचाने का पूरा प्रयास किया, बहुत अधिक बहस की आवश्यकता नहीं रहती। मुख्य प्रश्न यह है कि क्या हमारे राजनेता निर्लज्ज चाटुकारिता से बाहर आने का साहस देशहित में कभी जुटा पाएंगे अथवा यूं ही थोथे तर्कों व बेशर्म बयानों से देश की जनता को मूर्ख बनाया जाता रहेगा?
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-वासुदेव त्रिपाठी
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