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यह आजादी स्वीकार नहीं है

RASHTRA BHAW
RASHTRA BHAW
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पाकिस्तानी झण्डे फहरें और तिरंगे जलते हैं।
भारत के सीने पर निर्भय आतंकी पलते हैं।
अफजल के जूतों के नीचे न्याय यहाँ कुचला जाता।
भारत की संप्रभुता का सम्मान यहाँ मसला जाता।
कोई गिलानी दिल्ली आकर भारत को भभकी देता है।
गीदड़ सिंहों की छाती पर चढ़-चढ़कर धमकी देता है।
भारत के गद्दारों को अधिकार यहाँ बांटे जाते।
राष्ट्रप्रेम के दीवाने हैं दर-दर की ठोकर खाते।
कश्मीरी पण्डित के बच्चे भूखे नंगे रोते हैं।
लालचौक पर अगर तिरंगा फहराओ दंगे होते हैं।
यह तो भारत की आजादी का कोई प्रतिमान नहीं है।
यह तो लाखों बलिदानों के सपनों का सम्मान नहीं है।
कैसे कह दूँ यह सुभाष के भावों का व्यापार नहीं है?
मुझको तो यह झूठी बेबस आजादी स्वीकार नहीं है॥
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आधा तो वह काश्मीर अब पाक चीन की थाती है।
उसी आग में यहाँ असम की भी अब जलती छाती है।
अमरनाथ की श्रद्धा है मोहताज जेहादी नखड़ों पर।
मालिक जैसे जिन्दा हो कुत्तों के डाले टुकड़ों पर!
सदियों की परिपाटी बेबस सहमी हक्की-बक्की है।
सरकारों के गलियारों में फिर भी मसान सी चुप्पी है।
बलिदानों पर यहाँ सियासत की जाती कालिख पोती।
और मुजाहिद्दीनों की चौखट पर सत्ता रोती.!
चौराहों पर ही नारी की अस्मत लुटना जारी है।
हे भारत माँ! आज़ादी की यह कैसी लाचारी है.?
कहीं हजारों हैं शराब की बोतल पर फूंके जाते।
कहीं कहीं भारत के बेटे हैं श्मशान भूखे जाते।
यह तो भारत के जन-गण-मन का कोई गान नहीं है।
यह तो भारत की परिपाटी का कोई उपमान नहीं है।
यहाँ इण्डिया के आगे कुछ भारत को अधिकार नहीं है।
मुझको तो यह झूठी बेबस आजादी स्वीकार नहीं है॥
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© वासुदेव त्रिपाठी
15 अगस्त 2012

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