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एक शान्त व सुखी जीवन के लिए शांत परिवार के साथ-साथ शांत पड़ोसी का होना भी परमावश्यक है, यह सत्य जितना व्यक्तिगत स्तर पर प्रासंगिक है उतना ही राष्ट्रीय स्तर पर भी। यह आपकी योग्यता व दूरदर्शिता की चुनौतीपूर्ण परीक्षा ही होती है यदि आपको स्वभाव से ही उद्दंड व दुष्ट पड़ोसी पाले पड़ जाए! दुर्भाग्य से एक राष्ट्र के रूप में भारत के साथ कुछ ऐसा ही है।
पाकिस्तान अपने जन्म के दिन से ही भारत का शत्रु है और भारत की राह में कांटे बोने का काम बखूबी कर रहा है। किन्तु साथ ही यह स्वीकारने में भी संकोच नहीं होना चाहिए कि भारत अपने इस उद्दंड व विश्वासघाती पड़ोसी से निपटने में उस निपुणता व दूरदर्शिता का परिचय नहीं दे पाया है जो आवश्यक थी। किन्तु अतीत की इन भूलों से हमें अब तक बहुत कुछ सीख लेना चाहिए था किन्तु दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ। भारतीय विदेशमंत्री एस एम कृष्णा ने पाकिस्तान जाकर जिस प्रकार से शांति की दिशा में कदम बढ़ाने के नाम पर कुछ बेहद गलत निर्णय लिए उससे एक बार फिर स्पष्ट हो जाता है कि हम अभी तक गलतियों को दोहरने के पुरानी रोग से नहीं उबर पाए हैं।
विदेश मंत्री ने पाकिस्तान पहुँचते ही वीजा नियमों को आसान बनाए जाने संबंधी ठीक वैसा ही निर्णय लिया जैसा कि उनकी इस यात्रा से पूर्व ही कयास लगाए जा रहे थे, इससे स्पष्ट है सरकार पहले ही इस निर्णय के लिए पूरा मन बना चुकी थी जबकि 26/11 जैसी घटना के साये में उलझ चुके सम्बन्धों के बाद विदेशमंत्री स्तर की इस वार्ता का उद्देश्य स्थितियों को भांपना और पाकिस्तान से अपना दृष्टिकोण करना होना चाहिए था। यह समझ से परे है कि 26/11 के बाद जिन कारणों व उद्देश्यों को ध्यान में रखकर पाकिस्तान से संबंध विच्छेद का निर्णय लिया गया था उनमें से क्या कुछ पूरा हो गया है कि अब शांति बहाली के एकतरफा व्यग्र हो जाना चाहिए? एक सशक्त राष्ट्र के रूप में भारत से आशा थी कि वह 26/11 के पाकिस्तान में बैठे कर्ता-धर्ताओं को सौंपे जाने के लिए पाकिस्तान को विवश करेगा किन्तु इसके विपरीत भारत पाकिस्तान को यह मनवाने तक में असफल रहा कि इस जघन्य षड्यंत्र के लिए उसके यहाँ स्वच्छ्न्द घूमते हाफिज़ सईद जैसे आका जिम्मेदार हैं।
कश्मीर और आतंकवाद भारत और पाकिस्तान के बींच परंपरागत और प्राथमिक समस्याएँ हैं जिसमें आतंकवाद एक ऐसा विषय है जिसके हल हुए बिना अन्य किसी बिन्दु पर सोचा जाना भी किसी राष्ट्र के हित में नहीं हो सकता। एक ऐसे समय जब सम्पूर्ण विश्व में पाकिस्तान की छवि एक आतांकवाद पोषक मुल्क के रूप में उभर चुकी है और स्वयं अमेरिका भी आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान की लगाम कसे है, भारत द्वारा जिस प्रकार बिना मौसम वीजा नियमों में ढील देते हुए पाकिस्तानियों का स्वागत करने का निर्णय लेकर आतंकवाद के मुद्दे को नेपथ्य में धकेल दिया गया वह निःसन्देह आश्चर्यजनक व आत्मघाती है। यह अभी तक समझ नहीं आ रहा कि 26/11 के बाद पाकिस्तान पर कूटनीतिक दबाब बनाने की जो बातें हो रही थीं उनका क्या हुआ?
यह सत्य है कि भारत और पाकिस्तान के मध्य कई बिलियन डॉलर के व्यापार की संभावनाएं हैं जिसे ध्यान में रखते हुए व्यापारिक सम्बन्ध बहाल होना दोनों देशों के वृहत आर्थिक हित में है और इसके लिए वीजा नियमों में ढील देने की महती आवश्यकता थी किन्तु फिर भी व्यापारिक आवश्यकताएँ उपरोक्त प्राथमिकताओं को गौड़ नहीं कर सकतीं। प्रत्येक स्थिति में राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है और उससे समझौता नहीं किया जा सकता। 38 वर्ष पुराने वीजा नियमों को हटाकर जो प्रावधान लाये गए हैं उनमें से कई फूलप्रूफ सुरक्षा का आश्वासन नहीं देते। नए प्रावधान के अनुसार वीजा आवेदन के 45 दिनों के भीतर प्रदान करना अनिवार्य होगा जबकि अब तक इस तरह की कोई समय सीमा नहीं थी। इसके अतिरिक्त नए वीजा नियम के अनुसार वीजा तीन महीने के स्थान पर छह महीने के लिए दिया जाएगा और भारत आने वाला पाकिस्तानी नागरिक किन्हीं पाँच स्थानों की यात्रा कर सकेगा जबकि पूर्व में तीन स्थान ही वैध थे। ऐसे में यह शंका उत्पन्न होती है कि 45 दिनों की समय सीमा में एक आतंकवादी देश से आने वाले नागरिकों की पृष्ठभूमि और मंसूबों की कितनी बारीक और गहरी जांच पड़ताल की जा सकेगी? स्वाभाविक है कि जैसे जैसे आने वाले पाकिस्तानियों की संख्या बढ़ेगी सुरक्षा एजेंसियों के लिए उनकी हकीकत खोद पाना दुष्कर होता जाएगा और आतंकी संगठन इसका पूरा लाभ उठाने का प्रयास करेंगे। इस नए करार के अनुसार 12 वर्ष से कम आयु के बच्चे, 65 वर्ष से अधिक वरिष्ठ नागरिक व ऐसे व्यक्ति जिनका विवाह भारत में अथवा भारत से पाकिस्तान में हुआ है दो वर्ष तक के वीजा के लिए आवेदन कर सकते हैं। हाँलाकि एक साथ तीन माह से अधिक रहने की छूट नहीं होगी किन्तु बार बार आने में पूरी सुविधा अवश्य होगी। भारत की मुस्लिम महिलाएं अभी भी अच्छी संख्या में पाकिस्तान में शादी करती हैं अतः जमाई बनाकर आतंकी संगठन भारत में आतंक की खुराक नहीं भेजेंगे, इसकी गारंटी कौन ले सकता है? आतंकी हमले के लिए सटीक स्थानों की रेकी व पड़ताल आतंकवादियों की पहली आवश्यकता होती है जिसके लिए भारत में पैठ बनाना आवश्यक होता है। 26/11 के लिए यह काम डेविड हेडली ने किया था। हाँलाकि पाकिस्तानी नागरिकों के लिए प्रत्येक गंतव्य की जानकारी पुलिस को देना आवश्यक है किन्तु न ही पुलिस हर आगंतुक के पीछे-पीछे रहती है और न ही आतंकियों के लिए पुलिस के रहते पड़ताल असंभव काम है। विशिष्ट व्यापारियों के साथ-साथ 65 वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों, जिनमें हाफ़िज़ सईद जैसे मौलाना भी हो सकते हैं, के लिए पुलिस को जानकारी देना भी आवश्यक नहीं है। सबसे बड़ी बात यह है आसानी से आने जाने के चलते भारत के सिमी और इंडियन मुजाहिद्दीन जैसे संगठनों के और भी सक्रिय हो जाने की संभावनाएं कई गुना बढ़ जाएंगी जिनके तार सीधे सीमा पार से जुड़े हैं।
यह भी एक विडम्बना ही है कि जिस दिन देश के विदेश मंत्री इस्लामाबाद में पाकिस्तानियों के लिए वीजा आसान करने का करार कर रहे थे उसी दिन दिल्ली में प्रधानमंत्री सुरक्षा एजेंसियों की एक मीटिंग में चेतावनी दे रहे थे कि सीमा पार से कश्मीर सहित देश के अन्य हिस्सों में आतंकी घुसपैठ की संभावनाएं काफी बढ़ गई हैं। प्रधानमंत्री की यह चिंता बिलकुल अनुचित नहीं है क्योंकि गृहमंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान से 2008 में 342, 2009 में 485, 2010 में 489 व जून 2011 तक 52 घुसपैठियों ने भारत में घुसपैठ का प्रयास किया। इसी समय में कुल 305 घुसपैठिए सेना द्वारा मार गिराए गए। घुसपैठ का सुनियोजित षड्यंत्र आईएसआई व पाकिस्तानी सेना द्वारा संचालित होता है जिसके लिए 2003 में किए गए संघर्ष विराम का उल्लंघन कर पाकिस्तानी सेना भारतीय चौकियों पार गोलीबारी करती रहती है। 2008 से जुलाई 2011 तक पाकिस्तानी सेना ने 168 बार घुसपैठ सफल करने के लिए सीमा पर गोलीबारी की है। पाकिस्तान का यह सिलसिला 2012 में भी अनवरत जारी है और पिछले महीने अगस्त में पाकिस्तान की ओर से लगभग पंद्रह बार सीमा पर गोलीबारी की जा चुकी है। 4 सितंबर को भी 45 मिनट गोलीबारी की खबरें आयीं थी जबकि 5 सितंबर को सेना का एक जवान घुसपैठ असफल करने के प्रयास में शहीद भी हो गया था। ऐसी स्थिति किसी और देश के साथ होती तो परिणाम विस्फोटक हो सकते थे किन्तु भारत के विदेश मंत्री 8 सितंबर को इस्लामाबाद जाकर वीजा आसानी से देने की व्यवस्था कर आए।
निश्चित रूप से वीजा नियमों का यह खेल पाकिस्तानी घुसपैठियों के लिए ही सबसे बड़ी राहत है, जहां तक भारतीयों का प्रश्न है उनके लिए न तो पाकिस्तान जाने लायक कुछ बचा है और न ही आईएसआई के रहते यह इतना आसान होता है। यह तो भविष्य ही बताएगा कि इससे भारत को कितना व्यापारिक लाभ मिल पाता है किन्तु इतना तय है कि यह भारत के हिस्से में कूटनीतिक दबाब की एक बड़ी क्षति है और अब भारत इसी क्षति के चलते 26/11 जैसे हमले के बाद एक बार फिर खाली हाथ खड़ा है! पड़ोसी उद्दंड है किन्तु आज चाणक्य के देश में शांति के बहाने आतंक को निमंत्रण देते इन नितिनियंताओं को कौन समझाए कि राष्ट्र के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा ही प्रथम व सर्वोपरि है!
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वासुदेव त्रिपाठी
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