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कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी की गिरफ्तारी ने सोशल मीडिया को इन दिनों गरम कर रखा है। फेसबुक से लेकर ट्विटर तक विचारों, सलाहों, गिरफ्तारी के विरोध व असीम के समर्थन में गरम बाजार में मेरी भी उपस्थिति रही किन्तु मात्र अपने विचार व्यक्त करने तक! किन्तु कई मित्रों द्वारा चर्चा में मुझे घसीटे जाने व भावुकता में बहते जन सैलाब द्वारा हकीकत से परे तर्कों की बाढ़ ने मुझे इन दिनों की बेहद व्यस्तता के बाद भी मजबूर किया कि मैं इस पर लिखूँ! बहुत संभव है कि कई लोग इस विषय पर मेरे विचारों से सहमत न हों क्योंकि प्रायः बहाव में भावुक होकर बह जाने की प्रवत्ति जनसामान्य में होती है किन्तु मेरा प्रयास रहता है कि मैं वास्तविकता को तथ्यों के धरातल पर देखूँ और उसी आधार पर लिखूँ। लेखन की दुनिया में मैंने पहले शब्द सीखा था “विश्वसनीयता” (Credibility) और यही शब्द मैंने देश के हर उस शिखर के पत्रकार के मुंह से सुना है जिनसे भी मुझे मिलने का मौका मिला.!
जहां तक बात असीम त्रिवेदी की है उन्हें किसी भी रूप में देशद्रोही ठहराए जाने को मैं प्रासंगिक नहीं समझता। किन्तु सोशल मीडिया पर असीम का समर्थन करने वाला बड़ा तबका मात्र भावनाओं में बह रहा है जोकि हम भारतीयों का एक बड़ा गुण भी है और दोष भी.! यह इसी भावुकता का परिणाम है कि बड़ा तबका असीम की गिरफ्तारी का ठीकरा सीधे सरकार के सिर फोड़ रहा है और कॉंग्रेस को गाली देने में जुटा है। भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबी कॉंग्रेस की तीखी आलोचना मेरे लेखों में किसी को भी स्पष्ट दिखेगी किन्तु निरर्थक आरोपों का मैं बिलकुल भी समर्थन नहीं करता चाहे वह व्यक्ति विशेष के प्रति हो अथवा पार्टी विशेष के प्रति। वस्तुतः असीम पर दर्ज किए गए केस का कॉंग्रेस सरकार से कोई भी सीधा संबंध नहीं है। असीम के विरुद्ध रिपोर्ट मुम्बई के एक वकील ने लिखवाई है जिसने उनके कार्टूनों को राष्ट्रीय प्रतीकों के प्रति अपमानजनक पाया। असीम कोई ऐसी सख्शियत नहीं है जिनके कार्टूनों ने सरकार अथवा कॉंग्रेस की नाक में दम कर दिया हो अथवा किसी बड़ी जनक्रांति जैसी स्थिति संभावना पैदा कर दी हो और सरकार ने उन्हें जेल में डाल दिया हो!
यद्यपि यह सच है कि असीम ने अपने कार्टूनों के माध्यम से भ्रष्टाचार पर प्रहार करने का प्रयास किया था किन्तु इससे इस तथ्य को बदला नहीं जा सकता कि उनके कार्टून राष्ट्रीय चिन्हों को विकृत रूप में प्रस्तुत करते हैं। भारत माता का बलात्कार होते दिखाना भले ही आपकी दृष्टि में यह संदेश दे रहा हो कि भ्रष्टाचार भारत को लूट रहा है किन्तु इस तस्वीर का प्राथमिक स्वरूप स्वयं में शिष्ट नहीं है। चित्र का आशय तो उसमें निहित वस्तु है, किन्तु चित्र स्वयं में क्या है? यही कि भारत माँ का बलात्कार किया जा रहा है! आपको याद होगा कि एम एफ हुसैन ने भी एक पेंटिंग बनाई थी जिसमे उन्होने भारत माँ का बलात्कार चित्रित किया था। बाद में उन्होने भी यही कहा था कि मेरी पेंटिंग 26/11 हमले को चित्रित करती है किन्तु जनभावना ने उसकी कड़ी आलोचना की थी। असीम के संदर्भ में यह सत्य है कि उसमें अपवित्र भावना बिलकुल नहीं थी अतः उसकी हुसैन से तुलना नहीं की जा सकती तथापि अभिव्यक्ति के लिए जो तरीका असीम ने चुना वह जनभावना व भारतीय मूल्यों के अनुकूल नहीं था। भारतवासियों के लिए भारत के संदर्भ में माँ शब्द एक शब्द मात्र नहीं वरन एक शुद्ध भावना है जैसे कि एक कोख से जन्म देने वाली माँ के लिए होती है, और किसी के प्रति आक्रोश व्यक्त करने के लिए अपनी सगी माँ के बलात्कार की तस्वीर पुत्र नहीं बना सकता.! यह भारतीय संस्कृति व भावनात्मक मूल्य के विरुद्ध है। उसी प्रकार राष्ट्रीय चिन्ह में शेरों के स्थान पर मुंह में खून लगे भेड़ियों को असीम ने चित्रित किया जिसमे चक्र के स्थान पर खतरे के निशान में दिखाई जाने वाला हड्डी और कपाल तथा “सत्यमेव जयते” के स्थान पर “भ्रष्टमेव जयते” लिखा हुआ था। यदि असीम इसे भ्रष्टाचारियों का चिन्ह कहते तब भी एक सीमा थी किन्तु उन्होने इस पर “राष्ट्रीय चिन्ह” भी लिख दिया। नेता भ्रष्ट हो सकते हैं, सत्ता भ्रष्ट हो सकती है किन्तु इससे भ्रष्टाचार राष्ट्रीय चिन्ह नहीं बन जाता। असीम तो अन्ना हज़ारे के समर्थक हैं, उन्होने तो भ्रष्टाचार के विरुद्ध देश का आक्रोश देखा ही होगा। राष्ट्रीय चिन्ह देश के जनमानस को व देश की संस्कृति व आदर्शों को व्यक्त करता है न कि देश के भ्रष्टों को।
वस्तुतः असीम आज विवादों मे आकर चर्चित भले ही हो गए हों किन्तु वे उन कार्टूनिस्ट में से हैं जिनके अंदर कला का परिपक्व हुनर नहीं है अपितु कम्प्युटर ने जिन्हें कार्टूनिस्ट बनाया है। जिस तरीके के असीम ने कार्टून बनाए उनमें मौलिकता कम विकृत चित्रण अधिक है। मौलिक कार्टूनिस्ट के विचारों में अनूठी चोट होती है जोकि पूर्णतः नवीन खोज होती है। इसके लिए आप कुछ राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय कार्टूनिस्ट को देख सकते हैं। संसद को असीम ने शौचालय के रूप में दिखाया जबकि टाइम्स ऑफ इण्डिया के कार्टूनिस्ट अजीत नैनन ने एक कार्टून बनाया था, दोनों में परिपक्वता व अपरिपक्वता का भेद साफ समझा जा सकता है। असीम के ब्लॉग को मैंने खंगाला तो उसमें दिग्विजय सिंह के कार्टून थे जिसमें उन्हें सूअर के रूप में दिखाया गया था और दिग्विजय के स्थान पर पिग्विजय शब्द का प्रयोग किया गया था जोकि आजकल सोशल मीडिया पर दिग्विजय के ऊटपटाँग बयानों के कारण आलोचकों ने रख रखा है। सोशल मीडिया पर लिखने वाले आम लोग सिर्फ गुस्सा निकालते हैं अतः असीम उसी श्रेणी में हैं। मीडिया लोकतन्त्र का एक स्तम्भ है जिसके नैतिक दायित्व होते हैं अतः वह दिग्विजय जैसे नेताओं के लिए भी असंसदीय भाषा का प्रयोग नहीं कर सकती। आम आदमी तो नेताओं को देशी गालियों से भी नवाजता है, क्या मीडिया अथवा परिपक्व कार्टूनिस्ट/व्यंगकार गालियों का प्रयोग करने लगेगा.? विकृतिकरण/अशिष्टता और कला में गंभीर अन्तर है।
आवश्यकता है कि हम परिपक्व बनें, नैतिक अनैतिक, संवैधानिक असंवैधानिक के बींच अंतर को समझें। कुछ लोग कहते हैं असीम गिरफ्तार किए गए किन्तु नेता संसद मे अथवा बाहर जो आचरण करते हैं वह देश व लोकतन्त्र का अपमान नहीं है? नेताओं पर उनके आचरण के लिए उनकी आलोचना की जानी चाहिए, मुकदमे डालने चाहिए न कि दोषारोपण का खेल खेलना चाहिए और असंवैधानिक कार्टून का समर्थन होना चाहिए। हमें सोचना चाहिए कि क्या राष्ट्रीय चिन्हों के विकृत चित्रण से भ्रष्ट नेताओं द्वारा राष्ट्र के अपमान का बदला निकल आएगा अथवा विकृत प्रस्तुति से कोई क्रांति आ जाएगी.? इससे भविष्य में उन लोगों को बढ़ावा मिलेगा जो भारत को अपमानित करने की फिराक मे रहते हैं।
असीम पर नेशनल ऑनर एक्ट 1971 के तहत मुकदमा दायर किया गया है और हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि इस कानून के तहत राष्ट्रीय अस्मिता, सम्मान के प्रतीकों का विकृत प्रस्तुतीकरण (misrepresentation) वर्जित है। मामला सरकार का नहीं बल्कि न्यायालय का है अतः हमें अपने संविधान व न्यायालय की प्रक्रिया पर थोड़ा विश्वास व धैर्य रखना चाहिए। असीम का मामला कोई अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र नहीं है जिसमें वकील व जज सभी खरीद लिए जाएंगे। हम जानते हैं कि असीम के कार्टूनों का उद्देश्य गलत नहीं था अतः हमें यह विश्वास रखना चाहिए कि न्यायालय में जज भी यह बात समझने में सक्षम होंगे। देशद्रोह व त्रुटिपूर्ण अभिव्यक्ति में न्यायालय अवश्य अन्तर जानता है। असीम का काम देशद्रोह नहीं है अतः उन्हें सजामुक्त होना ही चाहिए किन्तु कम से कम असीम व उनके जैसे अपरिपक्व नवयुवकों को यह एहसास भी करना ही चाहिए कि जिस तरह से व्यावहारिक जीवन की मर्यादाएं होती हैं उसी तरह संवैधानिक मर्यादाएं भी होती हैं। राष्ट्रीय चिन्ह हमारे अपने ही गौरव व आत्मसम्मान के प्रतीक हैं। अमर्यादित नेताओं की आलोचना के लिए हम अपनी ही मर्यादा व सांस्कृतिक श्रद्धा पर चोट कैसे कर सकते हैं.? परिपक्वता आवश्यक है क्योंकि असीम ने जिस तरह अपरिपक्व कार्टून बनाए और उनकी गिरफ्तारी को मुद्दा बनाकर लोगों ने जिस तरह शोर मचाना शुरू कर दिया उससे लगता है राष्ट्र की युवा पीढ़ी को, जिसके कंधों पर देश के भविष्य का बोझ है, अभी काफी कुछ सीखना है।
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वासुदेव त्रिपाठी
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