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एक भूखण्ड को एक राष्ट्र के रूप में परिभाषित किए जा सकने के लिए क्या अपरिहार्य है? राष्ट्र का सांस्कृतिक अस्तित्व व स्वतन्त्र संप्रभुता! किन्तु जब 121 करोड़ की आबादी वाले तथाकथित रूप से वैश्विक पटल पर आर्थिक सामरिक महाशक्ति के रूप में उभरते एक राष्ट्र की अखंडता संप्रभुता व सम्मान को एक अदना सा मुल्क बार बार सारे-आम तमाचा मारे किन्तु महाशक्ति के नीतिनियन्ता अपनी रीढ़हीनता को छुपाने के लिए निर्लज्जतापूर्वक शान्ति शान्ति की रट लगाकर राष्ट्र के जख्मों व अपमान को ढंकने का प्रयास करें, तब क्या स्वतन्त्र राष्ट्र अवधारणा पर लज्जा के प्रश्नचिन्ह नहीं लग जाते.?
दुर्भाग्य से हमारा देश ऐसे ही संकल्पहीन व लचर नेतृत्व के हाथों में पड़ा है। भारत की सीमा के भीतर घुसकर भारत के सीने पर आतंकपरस्त पाकिस्तान द्वारा जघन्य हमला किया गया, हमारी सीमा में तैनात हमारे सैनिकों की हत्या करके पाकिस्तानी सैनिक उनका सर काटकर अपने साथ ले गए जैसाकि मध्यकालीन अरब लुटेरे किया करते थे किन्तु एक समर्थ राष्ट्र के रूप में हम क्या करने की स्थिति में हैं? सर कटे शव के गाँव पहुँचने पर बिलखती हुई शहीद की माँ कह रही थी जब तक मेरे बेटे का सर नहीं लाते मैं दाहसंस्कार नहीं होने दूँगी! क्या दिल्ली के सत्तासीनों के कानों तक यह आवाज़ पहुंची, क्या अमन के कसीदे पढ़ने वालों के पास पाशविक क्रूरता से मारे गए सैनिकों के परिवार वालों तथा पूरे देश के लिए कोई जबाब था.? आखिर अमन की आशा में देश कब तक पीठ में खंजर झेलता रहेगा.?
संप्रभुता सामर्थ्य का दम भरने वाला विश्व का वह कौन सा देश इतनी बड़ी पराजय का घूंट चंद बयानों की उल्टी करके इतनी आसनी से पी जाएगा? यह देश के स्वाभिमान की पराजय है, स्वतन्त्रता की संकल्पना की पराजय है, जनभावना की पराजय है तथा देश के उस सुरक्षातन्त्र की पराजय है जो देश के नागरिक के खून पसीने की कमाई से खड़ा किया गया हैं, किन्तु इस पराजय की जड़ में मात्र एक पराजय ही है और वह है नीतिगत पराजय! आज देश के नेता बयान दे रहे हैं कि पाकिस्तान हमारे धैर्य की परीक्षा न ले! अन्यथा.? अन्यथा अमन की आशा में की जा रही वार्ताएं बन्द कर दी जाएंगी! हमारी बयानबाज सरकार की दृष्टि में अभी तक वार्ता जारी रखने की जगह बची हुई है।
कारण चाहे जो भी हों किन्तु इसमें संदेह नहीं कि भारत सरकार की संकल्पहीनता ने एक के बाद एक देश को कूटनीतिक असफलता की गहरी खाईं में धकेला है। 26/11 जैसे भीषण आतंकवादी हमले के बाद देश बहुत कुछ खो चुका था, थोड़ी बहुत भरपाई के लिए यदि कहीं कोई संभावना थी तो वह पाकिस्तान पर कूटनैतिक राजनैतिक दबाब का एक अवसर जिससे पाकिस्तान की सह पर उसकी सीमा में काम कर रहे भारतविरोधी आतंकवादी संगठनों की रीढ़ तोड़ी जा सकती थी और पाकिस्तान को विश्व में अलग-थलग किया जा सकता था.! किन्तु भारत के स्वयं रीढ़हीन सत्ताधीशों ने बहुत प्रारम्भिक स्तर पर ही अपने निकम्मेपन का प्रमाण दे दिया परिणामस्वरूप जब पाकिस्तान को लड़खड़ाती जुबान में अलग-थलग होना चाहिए था तब वह सीना ताने इस पूरे षड्यन्त्र से हाथ झाड़ रहा था। भारतीय कूटनीति की महान असफलता का ही परिणाम है कि 26/11 पर भारत द्वारा निरुत्तर कटघरे में खड़े किए जाने के स्थान पर पाकिस्तान उल्टा भारत से सवाल जबाब करता रहा है और कर रहा है, बावजूद इसके कि अजमल कसाब के रूप में एक जिंदा सबूत हमारे हाथ में था।
हमारी स्थिति थूक कर चाटने जैसी हो गई है। हमने 26/11 पर अपनी प्रतिक्रिया के रूप यदि कुछ किया तो वह तथाकथित शान्ति वार्ताओं का स्थगन! किन्तु न जाने किन अबूझ दबाबों अथवा कारणों के चलते हम निहतायत बेचैनी में फिर से शान्ति का मुशायरा करने बैठ गए? ऐसे में देश के अदने से आम नागरिक का सत्ता के शीर्ष पर बैठे नीतिकारों कूटनीतिज्ञों से अदना सा सवाल तो उठता ही है कि किन उद्देश्यों अथवा कारणों को ध्यान में रखते हुए पाकिस्तान के साथ वार्ता व्यापार को बन्द किया गया था, क्या वे उद्देश्य पूरे हो चुके हैं, क्या देश कुछ वांछित हासिल कर चुका है कि अब पुराने निर्णयों को रद्द कर पाकिस्तान से दोबारा गलबहियाँ शुरू कर दी गईं?
पाकिस्तान द्वारा पाला गया आतंकवाद का सँपोला आज खुद पाकिस्तान के लिए आत्मघाती हो चुका है, परिणामस्वरूप 10-20-50 मौतें पाकिस्तान में रोज़मर्रा की बात बन चुकी है। उसी कड़ी में अभी एक और बम धमाके में 100 से ज्यादा शिया मारे गए हैं। अमेरिका रोज पाकिस्तान को सीधे ड्रोन हमलों से बताता है कि उसके यहाँ आतंकवादी किस तरह पनप रहे हैं किन्तु भारत, जोकि पाकिस्तानी आतंकवाद का सीधा और सबसे बड़ा भुक्तभोगी है, अब तक सलीके से अपनी बात कहने तक में नाकामयाब है। उल्टा पाकिस्तान वज़ीरिस्तान समस्या के लिए भारत पर आँखें टेढ़ी करता रहता है, हाँलाकि अगर भारत वज़ीरिस्तान मामले में सलीके से पेश आता तो पाकिस्तान की सारी ताकत वज़ीरिस्तान को संभालने में ही चुक रही होती व उसे कश्मीर का नाम लेने का भी ठीक से मौका नहीं मिलता। विडम्बना देखिए कि अपने अस्तित्व का आधे से अधिक समय सैनिक तानाशाही के डंडे तले गुजारने वाला मुल्क कश्मीर पर हमें लोकतन्त्र का पाठ पढ़ाने का प्रयास करता है.!!
अमन की आशा की एकतरफा वकालत करने वाले प्रायः दलील देते हैं कि भारत-पाकिस्तान के झगड़े राजनैतिक गतिरोधों का परिणाम हैं जिन्हें कि दोनों देशों की जनता के स्तर पर सुलझाया जा सकता है! किन्तु ये खोखली दलीलें अपनी मानसिक दुर्बलताओं के लिए बहानेबाजी से अतिरिक्त कुछ भी नहीं हैं। भारत-पाकिस्तान विवाद कश्मीर की छाती पर ठुका सीधा और तीखा दावा है, कश्मीर पर अंतिम निर्णय से पहले इस विवाद का कोई हल नहीं है.! जो यह समझते हैं अथवा समझाने का प्रयास करते हैं कि पाकिस्तान जैसे पीठ पर छुरा भोंकने वाले पड़ोसी के साथ समस्या की जड़ को नजरंदाज करके शान्ति स्थापित की जा सकती है वे या तो भ्रमित हैं अथवा भ्रमित करने का प्रयास कर रहे हैं। पाकिस्तान में जगह जगह फूंफकारता इस्लामिक कट्टरपंथ और कश्मीर का नासूर इस बात का प्रमाण है कि विवाद मात्र राजनैतिक नहीं वरन मानसिकता का परिणाम भी है। यह वही मानसिकता है जिसके चलते अलग पाकिस्तान की मांग की गई थी और दुर्भाग्य से उसी मानसिकता के जहर को पाकिस्तान की नई पीढ़ी को घोल-घोलकर पिलाया गया। पाकिस्तान की स्कूली किताबों का पाठ्यक्रम यदि आप देखेंगे तो यह बात आसानी से समझ जाएंगे।
जिस समय दिल्ली में शान्ति और व्यापार के लिए राजनेता पाकिस्तानियों से गले मिल रहे थे, लंच-डिनर चल रहा था तथा रिश्तों को मजबूत करने के नाम पर यहाँ क्रिकेट खेला जा रहा था उस समय सीमा पर पाकिस्तानी सेना भारतीय पोस्टों पर गोली मोर्टार दाग रही थी! समाचारपत्रों द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार 2003 के युद्ध विराम का पाकिस्तानियों द्वारा 2012 में 117 बार उल्लंघन किया गया, 2011 में 61 व 2010 में 57 बार गोलाबारी की गई थी। अधिकांशतः यह गोलाबारी भारतीय सीमा में घुसपैठ कराने के लिए होती है। गृहमंत्रालय के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 2008-11 के बींच 1368 घुसपैठ के प्रयास किए गए थे। किन्तु इन सब के बींच हमारी सरकार को एक सशक्त राष्ट्र की तरह दृढ़ता का परिचय देने के स्थान पर शान्ति की गुहार के साथ पाकिस्तान के सामने दंडवत होने में समाधान नजर आया। जवानों की निर्मम हत्या के बाद हमारी दंडवत सरकार जब तक सभल पाती पाकिस्तान फिर उल्टा हमारे सर पर चढ़ गया। जबाबी कार्यवाही में मारे गए अपने एक सैनिक के लिए वह उल्टा भारत से जबाब तलब कर रहा है! हमारे गृहमन्त्री ने बीजा सहूलियतों आदि पर लिए जा चुके निर्णयों पर कहा कि जो निर्णय लिए जा चुके हैं तथा जो प्रगति हो चुकी है उस पर फर्क नहीं पड़ेगा किन्तु तब तक पाकिस्तान ने भारत से सब्जियों के ट्रक अपनी सीमा में घुसने से रोक दिये तथा बसों का आवागमन रद्द कर दिया! हम एक बार फिर अपने सत्ताधीशों के चलते हाथ में शान्ति का प्रेमपत्र लिए मुँह की खाये खड़े हैं!
सरकार में बैठे सफ़ेदपोशों और नौकरशाहों को रीढ़हीन बयानबाजियों से बाहर निकलकर यह समझने की आवश्यकता है कि पाकिस्तानियों द्वारा यह वार केवल हमारे शहीद जवान हेमराज की ही गर्दन पर नहीं था वरन पूरे राष्ट्र व राष्ट्र की अवधारणा की गर्दन किया गया एक तीखा हमला था! हेमराज की विलखती माँ ने अपने बेटे का शव पहुँचने पर कहा कि वे लोग गर्दन काट तो सकते हैं किन्तु गर्दन झुका नहीं सकते! यही भावना राष्ट्र की अवधारणा की नींव रखती है किन्तु हमारे नीतिनिर्माता हर बार राष्ट्र की गर्दन पर हुए प्रहार के प्रतिउत्तर में राष्ट्र की गर्दन झुका देते हैं! अरे सत्तासीनों, गर्दन की कुछ तो कीमत समझो!!
-वासुदेव त्रिपाठी
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